नोट- यह लेख सितम्बर 2020 का है। किसी कारण प्रकाशित नहीं हो पाया था। कम्प्यूटर में पुरानी फाइलें देखते समय इस लेख पर आज
दिनांक 6 जून 2024 को नज़र पड़ी। लेख का टाइटिल ‘‘अनलॉक में भी बुनकरों के पेट पर तालाबंदी जारी है’’ था। इसे ‘‘बनारस, बुनकर और बेकारी’’ टाइटिल के साथ अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूं। मुमकिन है बीते हुए कल की कुछ जीवंत तस्वीरें आंखों के सामने उभर आएं और वर्तमान व भविष्य के सरोकारों की ओर ध्यान दिलाएं...
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नोट- यह लेख सितम्बर 2020 का है। किसी कारण प्रकाशित नहीं हो पाया था। कम्प्यूटर में पुरानी फाइलें देखते समय इस लेख पर आज
दिनांक 6 जून 2024 को नज़र पड़ी। लेख का टाइटिल ‘‘अनलॉक में भी बुनकरों के पेट पर तालाबंदी जारी है’’ था। इसे ‘‘बनारस, बुनकर और बेकारी’’ टाइटिल के साथ अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूं। मुमकिन है बीते हुए कल की कुछ जीवंत तस्वीरें आंखों के सामने उभर आएं और वर्तमान व भविष्य के सरोकारों की ओर ध्यान दिलाएं...
अनलॉक की प्रक्रिया पूरे देश में चल रही है। लेकिन बनारस के बुनकरों के लिए अनलॉक की प्रक्रिया बेमानी साबित हो रही है। पिछले पांच महीनों से ताना-बाना बंद पड़ा है। यह बंदी बुनकरी से आजीविका अर्जित करने वाले बुनकर परिवारों के पेट पर तालाबंदी का सबब बन चुका है। बेकारी और भूखमरी के हालात ने बुनकरों को अवसाद ग्रस्त कर दिया है।"वाराणसी माननीय प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है। वो बुनकरों की समस्याओं से अवश्य अवगत होंगे। उन्हें बुनकरों के लिए काम करने वाले समाज सेवियों और संगठनों के बारे में भी जानकारी होगी ही और सरकार के काम की भी। अच्छा होता कि माननीय प्रधानमंत्री समय रहते बुनकरों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुए अपने संसदीय क्षेत्र के मासूम बच्चों, महिलाओं, नौजवान और वृद्ध बुनकरों के लिए कुछ साकारात्मक पहल करें। वरना बनारसी साड़ियों की चमक फीकी पड़ जाएगी।"
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की तस्वीर किसी फिल्म या कहानी के स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं है, बल्कि वहां के बुनकरों की जिन्दगी की हकीकत है। इस बदहाली का कारण पूछने पर बुनकर बताते हैं कि पिछले पांच महीनों से मशीनें बंद है। बाजार बंद हैं। अब जब बुनकर फिर से काम शुरू करना चाह रहे हैं, तो बिजली की बढ़ी हुई दरें नयी मुसीबत बन गयी है। ताबिश बताते हैं कि बिजली विभाग द्वारा बुनकरों का कामर्शियल बिल जमा नहीं किया जा रहा है। मुख्तार खां बताते हैं कि नए मीटर को विभाग द्वारा बंद कर दिया जा रहा है। जाहिर है अनलॉक की प्रक्रिया में भी माननीय प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के बुनकर हताश और निराश हैं।
बुनकरों और बुनाई उद्योग के लिए सरकार की तरफ से योजनाओं का संचालन भी किया जा रहा है। लेकिन बुनकरों के कल्याण के रास्ते नज़र नहीं आ रहे हैं। कन्ट्रोल के राशन से घर नहीं चल सकता है। साग-सब्जी और तेल की भी जरूरत होती है। कोई बीमार पड़ जाए तो उसे डॉक्टर और दवाओं की ज़रूरत होती है। बुनकरी हर किसी के वश की बात नहीं है। ताना-बाना का चलना बुनकरों की सांसों का चलना है। जरूरी है कि सरकार इस ओर ध्यान दे और उनके काम में जो चीजें बाधक बनी हुई हैं उन्हें दूर करे। जैसे, बिजली की दर फिक्स्ड रखी जाए या सब्सिडी की व्यवस्था की जाए। बुनकरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे माल पर टैक्स में कमी की जाए या सब्सिडी भी दिए जाने की जरूरत है। इन उपायों के साथ-साथ बुनकरों को तत्काल आर्थिक सहायता की भी जरूरत है। जिस तरह लॉकडाउन के दौरान पंजीकृत और गैर पंजीकृत मजदूरों को एक-एक हजार रूपए की मदद प्रदेश सरकार द्वारा की गयी है। उसी तरह बुनकर बाहुल्य बस्तियों में भी कैम्प लगाकर बुनकर मज़दूरों को आर्थिक सहायता पहुंचाए जाने की जरूरत है। वरना जिन बच्चों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कही गयी है, वो बेमानी साबित होंगे। क्योंकि कोरोना से उपजी परिस्थियों के कारण अगर बुनकरों के बच्चों का बचपन गली-गली थरमस में चाय बेचने, कचौड़ी बेचने, टॉफी-बिस्कुट और फोंफी बेचने में खत्म हो जाएगा तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से ये बच्चे वंचित रह जाएंगे। कहना पड़ रहा है कि वाराणसी माननीय प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है। वो बुनकरों की समस्याओं से अवश्य अवगत होंगे। उन्हें बुनकरों के लिए काम करने वाले समाज सेवियों और संगठनों के बारे में भी जानकारी होगी ही और सरकार के काम की भी। अच्छा होता कि माननीय प्रधानमंत्री समय रहते बुनकरों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुए अपने संसदीय क्षेत्र के मासूम बच्चों, महिलाओं, नौजवान और वृद्ध बुनकरों के लिए कुछ साकारात्मक पहल करें। वरना बनारसी साड़ियों की चमक फीकी पड़ जाएगी।
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