Wednesday, October 24, 2012

बुनकरों के ज़मीनी यथार्थ


 इस पूरे दौर में बुनकरों का न केवल जीवन स्तर बद से बदतर हुआ है बल्कि कइयों को तो खून, जमीन और अपने कलेजे के टुकड़ों तक को बेचना पड़ा। जहां इससे भी बात नहीं बनी वहां आत्महत्याओं का दौर चला। पांच बरस पहले बनारस के लोहता और बजरडीहा की घटनाएं इन्हीं परिस्थितियों और घटनाओं की गवाह हैं।

पिछले साल नवम्बर में बुनकरों के कर्ज माफी की 6234 करोण रूपए की योजना की घोषणा की गयी। इसमें 3884 करोण रूपए बुनकर समितियों और व्यक्तिगत बुनकरों के संस्थागत ऋणमाफी के लिए आवंटित किया गया है। शेष 2350 करोण की राशि 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 6 चरणों में बुनकरों के उत्थान हेतु खर्च किया जाएगा। माना जा रहा है कि इस पैकेज के तहत कुल 13 लाख बुनकरों को लाभ पहुंचेगा। अकेले पूर्वी उत्तर प्रदेश के करीब 11000 से अधिक बुनकर लाभान्वित होंगे। उद्योग और वाणिज्य मंत्री के अनुसार इस योजना से व्यक्तिगत बुनकरों के अलावा 15000 बुनकरों की कोआपरेटिव समितियों को मदद पहुंचेगा। 
ज्ञात हो कि पूर्वांचल के वाराणसी, मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, भदोही आदि जिलों में आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुनकर मज़दूर है। इनकी आजीविका का मुख्य साधन कपड़ों और कालीन की बुनाई है। पिछले दो दशकों से इन बुनकरों को व्यापार में मंदी की मार झेलना पड़ रहा हैं। विशेषकर आर्थिक उदारीकरण, मुक्त बाज़ार व्यवस्था के कारण एक तरफ जहां चाइनीज फैब्रिक्स और सिल्क के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय चुनौतियां खड़ी हुई हैं तो दूसरी तरफ सूरत की चिप एण्ड बेस्ट साडि़यों ने बुनकरों के लिए आन्तरिक खतरा पैदा किया है। इस पूरे दौर में बुनकरों का न केवल जीवन स्तर बद से बदतर हुआ है बल्कि कइयों को तो खून, जमीन और अपने कलेजे के टुकड़ों तक को बेचना पड़ा। जहां इससे भी बात नहीं बनी वहां आत्महत्याओं का दौर चला। पांच बरस पहले बनारस के लोहता और बजरडीहा की घटनाएं इन्हीं परिस्थितियों और घटनाओं की गवाह हैं। व्यापार में कुछ उतार-चढ़ाव के बाद भी बुनकरों की यथा स्थिति बनी हुई है। परिस्थितिवश बहुतेरे बुनकर संस्थागत कर्जदार हैं। बल्कि ऐसे बुनकरों की तादाद अधिक है जो कर्ज के स्थानीय ढ़ांचे में फंसे हुए हैं। जाहिर है केन्द्र सरकार के ऋण माफी का पैकज आम कर्जदार बुनकरों को राहत प्रदान नहीं करेगा। 
मालूम हो कि भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सरकारी एजेन्सी के माध्यम से कर्ज की व्यवस्था गरीबों-वंचितों की आजीविका सहायता के तौर पर महत्वपूर्ण माना गया है। अब मामला साड़ी बुनकरों का हो, कालीन बुनकरों का हो या जरदोजी का काम करने वाली मजदूर महिलाओं का हो, अहम सवाल यह है कि इन दस्तकारों की पहुंच सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं तक किस हद तक है? बुनकरों से बात करने पर पता चलता है कि ऋण माफी की योजना उनके लिए दूर की कौड़ी है। गांव रसूलपुर के मेराज अंसारी कहते हैं कि "जब ऋण ही नहीं मिलता तो ऋणमाफी कैसी ?" मेराज जैसे ढ़ेरों बुनकर हैं जो ऋण लेने के लिए पात्र ही नहीं होते। क्योंकि इनके पास या तो राशन कार्ड नहीं होता या फिर बैंक में खाता नहीं खुल पाता। बनारस के बुनकर कालोनी के साबित अंसारी की बातों पर यक़ीन करें तो "जो बुनकर कर्ज प्राप्त करने की पात्रता रखते हैं उन्हें बैंक वाले डिफाल्टर समझते है। इसलिए ऐसे बुनकर भी ऋण प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। जो सहकारी समितियां हैं उनकी संख्या बस इतनी है कि इनके नाम पर कोई भी करोणों का पैकेज घोषित कर आम बुनकरों को राहत के झूठे सपने दिखाकर वोट की सियासत आसानी से कर लेता है।" ऋणग्रस्त बुनकरों में उनकी संख्या अधिक है जो अपनी दैनिक आवश्यकताओं को स्थानीय ऋणदाताओं से कर्ज लेकर पूरा करते हैं। ऐसा भी होता है कि उनके श्रम से पूंजी खड़ी करने वाला मध्यस्थ उनके पारिश्रमिक के भुगतान में 4-6 माह विलम्ब करता है। यदि बुनकरों को बाजार तक सीधे पहंुच सुलभ हो जाता तो समय पर उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित हो पाता और वो बुनकर जो सरकारी एजेन्सियों से ऋण प्राप्त कर अपनी आजीविका के साधन को मजबूती नहीं दे पाते, उनका सही मायनों में भला हो जाता।
हरहाल, ऋण माफी की रकम पर भी विचार जरूरी है। पैकेज के अनुसार पात्र बुनकरों के 50000.00 रूपए तक के ऋण माफ किए जाएंगे। सवाल यह है कि यदि यह पैकेज लागू हो जाए, तो भी उन बुनकरों का क्या होगा जो पाचास हजार से अधिक राशि के कर्जदार हैं। एक उदाहरण पूर्वांचल के उस जिला से जहां कर्जदार बुनकरों की संख्या सवार्धिक बतायी जा रही है। ग़ाजीपुर जिला का गंगौली गांव राही मासूम रज़ा की जन्म भूमि के रूप में तो जाना जाता है। लेकिन इस गांव के बुनकरों का दर्द शायद ही कभी मीडिया और बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा-परिचर्चा का विषय बनता है। देखना यह है कि दर्जनों योजनाओं की भीड़ में ऋण माफी की योजना इस गांव के बुनकरों को किस रूप में राहत पहुंचा पाएगा। बात सिर्फ एक गांव की नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल के बुनकरों का है।
जाहिर है, कर्ज माफी पैकेज के बारे में उद्योग और वाणिज्य मंत्री ने विधान सभा चुनावों से पहले जो बयान दिया था उससे आम बुनकरों का भला होता नहीं दिख रहा है। यदि सही मायनों में केन्द्र और राज्य सरकारों को बुनकरों की फिक्र है तो इन्हें बुनकरों की रोजमर्रा समस्याओं को समझना होगा और तदनुरूप नीतिगत स्तर पर योजनाओं में सुधार करनी होगी। ताकि बुनकरों तक योजनाओं की पहुंच को संभव बनाया जा सके। वरना बुनकरों के लिए ऋण माफी या उनके कल्याण से संबंधित अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन में कोई भी नीतिगत भूल या कमी न सिर्फ योजनाओं की असफलता का कारण बनेगा बल्कि नीति निर्धारकों को बुनकरों के जमीनी यथार्थ से दूर भी करेगा।

इंकलाबी नज़र, 13 अप्रैल 2012