Wednesday, May 22, 2019

कौन जीत रहा है...! कौन हार रहा है...!

कील साहब के साथ एक खास बात है, जिसका ऐतराफ करना वो नहीं भूलते। वो जहां भी बैठते हैं, उन्हें नींद
आने लगती है। मुन्सफी मुहम्मदाबाद हो या तहसील मुहम्मदाबाद या फिर सदर रोड स्थित डाॅ॰ फतह मुहम्मद की क्लिनिक, हर जगह बैठते ही वो नींद की आगोश में चले जाते हैं। यद्यपि देश-दुनिया की चर्चाओं में वो स्वयं अपनी बात कहते समय ठीक रहते हैं। लेकिन जैसे ही उनकी बात समाप्त होती है, उनकी आंखें बन्द होने लगती हैं। उनके आस-पास होने वाली चर्चाएं जारी रहती हैं। लेकिन वो चर्चाओं से बेख़बर होते हैं। जब आंख खुलती है, तो बताना नहीं भूलते कि उन्हें बैठते ही सोने और सपने देखने की आदत है। आज 17वीं लोकसभा सामान्य निर्वाचन-2019 के लिए मतदान हो रहा है। दोपहर के 2 बजकर 20 मिनट हुए हैं। आज वकील साहब बैठे नहीं हैं, बल्कि क्लिनिक दक्षिण दिशा की दीवार से लगी तख़्त पर लेटे हुए हैं। लेटने का मौका उन्हें इसलिए मिला कि आज वो दोपहर के समय आए और शाम की चर्चा में शामिल होने वाले सदस्य मौजूद नहीं होते हैं। मैं और अब्बा क्लिनिक में पहुंचते हैं। वकील साहब को आवाज़ देते हैं। वकील साहब हिलते-डुलते हैं। हमें लगता है कि वो नींद से बेदार हो रहे हैं। मैंने उन्हें इस मुद्रा में कभी लेटे हुए नहीं देखा था। सर पर हरे रंग का गमछा कुछ इस तरह लगा रखा था जैसे वो अभी धूप से बचने की कोशिश कर रहे हैं। अंदाज़ा हुआ कि वो धूप में चलकर आए हैं। क्लिनिक में किसी को न पाकर लेट कर आराम कर रहे हैं। उनकी आंख खुलती है, वो उठकर बैठने की कोशिश करते हैं। मैं उन्हें लेटे रहने का आग्रह करता हूं।
उनकी अनुमति लेकर अपनी मोबाइल से इस मुद्रा में उनकी एक फोटो खींचता हूं। अब्बा मज़ाक करते हैं, “फोटो कहीं सोशल मीडिया में शेयर नहीं करना, वरना लोग पुछार के लिए आने लगेंगे।” वकील साहब मुस्कराते हुए उठकर बैठ जाते हैं। कहते हैं सपना देख रहा था। “कौन जीत रहा है...! कौन हार रहा है...!”, अब्बा चुटकी लेते हैं। वकील साहब की मुस्कराहट हंसी में बदल जाती है। हम सब हंसने लगते हैं। हा... हा... हा... हा... की आवाज़ फिज़ा में घुल जाती है।

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