Thursday, November 25, 2010

उप-राष्ट्रपति महामहिम हामिद अंसारी के उद्बोधन के निहितार्थ


इण्टर कालेज, मुहम्मदाबाद, ग़ाज़ीपुर

यह आलेख पिछले वर्ष 18 मार्च को महामहिम उप-राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी के अपने गृह नगर युसूफपुर-मुहम्मदाबाद आगमन के दिन का है, जो इण्टर कालेज, मुहम्मदाबाद की वार्षिक पत्रिका “सोमरस“ में प्रकाशित हो रहा है। इस आलेख में महामहिम के उद्बोधन का सार-संक्षेप है जो उन्होंने इण्टर कालेज, मुहम्मदाबाद में दिया था। यह कालेज किसी समय में स्कूल हुआ करता था और महामहिम उपराष्ट्रपति ने प्राथमिक शिक्षा इसी स्कूल से प्राप्त की थी। लोगों को अपने क्षेत्र के हर ऐसे व्यक्ति से कुछ खास अपेक्षाएं होती हैं। सो यहां के लोग भी महामहिम से कुछ अपेक्षाएं रखते हैं। लेकिन उनके आगमन के डेढ़ बरस गुजर जाने के बाद भी यहां के लोगों को कभी यह नहीं लगा कि वे किसी महामहिम के गृह नगर के वासी हैं। राही मासूम रज़ा ने “आधा गांव” की भूमिका में लिखा है- “ग़ाज़ीपुर ज़िन्दगी के काफिलों के रास्तों पर नहीं है। जब कोई काफिला यहां से होकर गुजरता है तो यहां के लोग उस काफिले की धूल को इत्र समझकर अपने बदन और कपड़े पर छिड़क लेते हैं और खुश हो लेते हैं।” कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले बरस 18 मार्च को महामहिम का नगर आगमन ऐसे ही किसी काफिला का हिस्सा रहा है।
पिछले 18 नवम्बर, 2010 को उप-राष्ट्रपति महामहिम हामिद अंसारी की माँ श्रीमती आशिया बेगम का स्वर्गवास हो गया। उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए इस आलेख को आप सभी तक पहुंचा रहा हूँ।


18 मार्च, 2009 को इण्टर कालेज, मुहम्मदाबाद में आयोजित अभिनन्दन समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति, महामहिम श्री हामिद अंसारी के उद्बोधन से तीन बातें स्पष्ट होती हैं, जो हमें चिंतन का अवसर प्रदान करती हैं। उनके उद्बोधन का पहला महत्वपूर्ण बिंदु था “शिक्षा”। दूसरा औद्योगिक विकास और तीसरा “वर्क कल्चर” का प्रसार। संभव है अभिनंदन समारोह की व्यस्तता और अपने गाँव-मुहल्ले से निकले इस सपूत की एक झलक पाने की लालसा में महामहिम की बातें समारोह हिस्से तक सीमित हो कर रह गयीं हों। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए उनके उद्बोधन में छुपे भाव को समझने का प्रयास करना स्वाभाविक है। यदि मीडिया की बात करें तो अखबारों में महामहिम के हेलिकाप्टर और सड़कों की सफाई के अलावा कुछ अधिक पढ़ने को नहीं मिला और न ही यह लिखा गया कि इण्टर कालेज के इस पूर्व छात्र और युसूफपुर-मुहम्मदाबाद के मूल निवासी हामिद अंसारी का उपराष्ट्रपति होना इस कस्बे और जिले के लिए क्या मायने रखता है।
उनके नगर आगमन से पूर्व ही चर्चाओं का बाजार गरम था कि उनका आगमन मुहम्मदाबाद में किसी विश्वविद्यालय, मेडिकल कालेज या इंजीनीयरिंग कालेज की सौग़ात ले आएगा। इस तरह की चर्चाएं स्वाभाविक हैं और इससे क्षेत्र की जनता की आशाओं और अपेक्षाओं का अंदाजा होता है। साथ ही उनकी सोच का भी पता चलता है कि उनकी मूलभूत आवश्यकताएं क्या हैं। इण्टर कालेज में प्रधानाचार्य ने अभिनंदन पत्र में इस तरह के शिक्षण संस्थानों के अभाव का जिक्र करते हुए एक विश्वविद्यालय की स्थापना की इच्छा जाहिर की। ये अलग बात है कि एक उपराष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में कौन से विषय हैं और कौन से नहीं। वैसे भी यह पद संवैधानिक पद है। इसलिए उनसे किसी योजना या स्कीम की घोषणा की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। लेकिन इस पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को नजर अंदाज़ भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह पद देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान का पद है, जिसपर हामिद अंसारी 12वें उपराष्ट्रपति के रूप में आसीन हैं। उनकी इच्छाओं में उनके गृह नगर ही नहीं बल्कि देश के हर नागरिक की इच्छा स्वतः शामिल है। इसलिए क्षेत्र वासियों की उनसे अपेक्षा को गलत भी नहीं कहा जा सकता है।
महामहिम ने अपने उद्बोधन में सर्व प्रथम अपने विद्यालयी दिनों को याद करते हुए कहा कि “यादें तो याद करने के लिए होती हैं।” महामहिम ने अपनी मातृभूमि को याद करते हुए कहा कि “इंसान दुनिया के किसी कोने में चला जाय लेकिन अपना घर, अपने लोग और अपनी मिट्टी से लगाव बना रहता है।” महामहिम के इन शब्दों को महज औपचारिक नहीं समझा जा सकता है। इनमें ऐसे व्यक्तियों के विकास की कहानी छुपी है जो देश के उच्च पदों पर आसीन तो हैं लेकिन उन्हें अपने घर और अपने लोगों से दूर रहने की व्यथा भी झेलनी पड़ती है। शायद अपने घर से संवेदनात्मक लगाव की भावना ही है कि महामहिम मुहम्मदाबाद आए और अपने गृह जनपद गाजीपुर को विकास के मुख्य धारा में शामिल करने इच्छा जाहिर की।
महामहिम ने अपने उद्बोधन में शिक्षा पर विशेष बल दिया। उन्होंने शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि शिक्षा हर व्यक्ति के लिए जरूरी है। उन्होंने उच्च शिक्षा से अधिक स्कूली शिक्षा को महत्वपूर्ण बताया। उन्हीं के शब्दों में कि “देश की आबादी को देखते हुए एक नहीं बल्कि दस-बारह विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक स्कूल हैं। क्योंकि उच्च शिक्षण संस्थानों में टीचर्स और प्रोफेसरों की उपस्थिति में बच्चे अपनी पढ़ाई आप करते हैं जबकि स्कूल वह स्थान होते हैं जहाँ व्यक्ति सीखता है।” यदि व्यापक संदर्भों में देखा जाए तो देश भर में चल रहे सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मिल योजना, निःशुल्क ड्रेस वितरण और छात्रवृत्ति की व्यवस्था वगैरह में महामहिम की स्कूल शिक्षा से संबंधित बातों का सार निहित है।
शिक्षा एक व्यापक विषय है। इसमें साहित्य और समाज से लेकर विज्ञान और तकनीक की शिक्षा शामिल है। हम जानते हैं कि 1986 की नई शिक्षा नीति में व्यसायपरक शिक्षा के महत्व को प्रमुखता से स्वीकार किया गया है। देश भर में तकनीकी शिक्षण की व्यस्था के लिए पालिटेक्निक और इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना भी की गयी है। लेकिन दुर्भाग्यवश गाजीपुर शिक्षा के इस क्षेत्र में पहले की तरह आज भी पिछड़ा हुआ है। इस सच्चाई से महामहिम भी भली भाँति अवगत हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने कहा कि “आज के दौर में हमारे बच्चों का टेक्निकल होना जरूरी है। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए टेक्निकल एजूकेशन के महत्व पर प्रकाश डाला कि “यदि अमेरिका में किसी डाक्टर की फीस 250 डालर है तो किसी बढ़ई की फीस भी डाक्टर से कम नहीं है।” महामहिम ने टेक्निकल एजूकेशन को व्यापक सामाजिक संदर्भों से जोड़ते हुए कहा कि समाज का हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है और कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता।
जाहिर है महामहिम काम के आधार पर विद्यमान सामाजिक भेद-भाव को गलत मानते हैं। उनके अनुसार वर्क कल्चर ही किसी समाज या देश को विकास के रास्ते पर आगे ले जा सकता है। इसी मंशा से मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) के विशेष आलोक में उन्होंने उद्योग-धन्धों की आवश्यकता और स्थापना की बात कही। उम्मीद की जानी चाहिए की महामहिम की इच्छाएं आने वाले दिनों में फलीभूत होंगी और गाजीपुर में भी उद्योग-धन्धों का विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। ताकि यहाँ के नौजवानों को काम के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े। जब औद्योगिक विकास होगा तो वर्क कल्चर स्वतः ही विकसित होगी। साथ ही जिले की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी और तभी समृद्धि तथा चहुमुखी विकास भी संभव हो सकेगा।
कहा जा सकता है कि महामहिम के उद्बोधन में एक तरफ जहाँ गाजीपुर जैसे पिछड़े क्षेत्र के विशेष आलोक में शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक विकास का दर्शन निहित है वहीं दूसरी तरफ इस क्षे़त्र की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की चिंताएं भी है। वरना महामहिम को कहना नहीं पड़ता कि देश भर में चल रहे विकास कार्यों में मुहम्मदाबाद-युसूफपुर का हिस्सा जरूर मिलेगा। आशा की जानी चाहिए कि अगली बार जब भी महामहिम गृह जनपद ग़ाज़ीपुर पधारेंगे तो जनपद वासियों के पास शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का रोना नहीं रहेगा।

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